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अब प्रदेश की राजनीति का यही 'न्यू नार्मल' है... इज्जत गई तेल लेने

हेडिंग-  अब प्रदेश की राजनीति का यही 'न्यू नार्मल' है... इज्जत गई तेल लेने  सब हेडिंग- जहर उगलती जुबान, हाइवे पर व्याभिचार...कोर्ट क...


हेडिंग-  अब प्रदेश की राजनीति का यही 'न्यू नार्मल' है... इज्जत गई तेल लेने 



सब हेडिंग- जहर उगलती जुबान, हाइवे पर व्याभिचार...कोर्ट की फटकार के बावजूद कार्रवाई नहीं 

हाइलाइटर- 

' कोई घटना कितनी गंभीर है वह अब इस बात से तय होता है कि उस घटना से जुड़े किरदार उस पार्टी के कितने वोट प्रभावित कर सकते हैं।'

' मंत्री विजय शाह के बयान और भाजपा नेता मनोहर लाल धाकड़ का हाइवे पर यौन संबंध बनाते हुए वीडियो ने निष्कृटता का नया न्यूनतम कायम किया है। '


वीरेंद्र तिवारी

संपादकीय प्रभारी, ग्वालियर


'रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून,

पानी गए न ऊबरे, मोती मानुष चून...'

बचपन में इसे सिर्फ पानी के संदर्भ में समझा था। फिर मेरे गुरुकुल में हिंदी के शिक्षक आदरणीय स्वदेश जैन जी ने बताया कि यह पानी केवल जल नहीं, प्रतिष्ठा और आत्मसम्मान का प्रतीक है। उस दिन लगा – वाकई, इज्जत और ज़मीर ही इंसान की असली पूंजी है। लेकिन उम्र के साथ समझ का विस्तार हुआ और फिर राजनीति देखी… और अब लगता है रहीम शायद आज के नेताओं के लिए दोहा लिखते तो कहते –

'रहिमन कुर्सी राखिए, बिन कुर्सी सब सून,

पद जाए तो फिर न मिले, चाहे गिरो जितून...'

अब बात सिर्फ गिरने की नहीं है, बात है गिरते जाने की, बिना शर्मिंदगी के, बिना थके, बिना किसी रुकावट के।

मंत्री विजय शाह जब कर्नल सोफिया को आतंकियों की बहन कहते हैं और फिर अदालतों की दो-दो डांट के बाद भी पार्टी उन्हें ससम्मान मंत्री बनाए रखती है .. तो समझिए इज्जत अब किसी प्राथमिकता की सूची में नहीं रही। जिस बयान को पाकिस्तान तक अपने राष्ट्रहित और भारत के खिलाफ दुष्प्रचार में इस्तेमाल कर रहा है, उसे हम राजनीतिक बयान कहकर पचा लेते हैं। मंत्री पर आजीवन कारावास तक की धारा लगती है, फिर भी वह माननीय बना रहते हैं क्योंकि वह आदिवासी वोटबैंक का ट्रस्टी हैं। यानी अब जुर्म नहीं, जुर्म करने वाला कितने वोट दिला सकता है यही तय करता है कि कार्रवाई होगी या नहीं। यह बात मजाक नहीं, बल्कि त्रासदी है कि 'घटना कितनी गंभीर है, यह अब इस पर निर्भर करता है कि उसका किरदार कितने वोट प्रभावित करता है।'

हाइवे पर हाई-विकृति

मंदसौर में भाजपा नेता मनोहर लाल धाकड़ का मामला अब उस 'न्यू नार्मल' की नई ऊंचाई (या कहें गिरावट) है, जहां पार्टी नेता हाईवे को ही पोर्न सेट बना डालते हैं। खुलेआम यौन क्रियाएं करते हैं, वायरल क्लिप्स, डोपट्टा सहित पार्टी नेताओं यहां तक कि उपमुख्यमंत्री जगदीश देवड़ा संग तस्वीरें सब सामने आ जाती हैं। पर कार्रवाई? पार्टी के जिला अध्यक्ष कहते हैं  – 'वो तो सिर्फ डिजिटल सदस्य हैं।' यानि अब नेता होना न होना नहीं, डिजिटल होना या डिजिटल पकड़ा जाना तय करता है कि आप पर सवाल उठेंगे या नहीं।

पार्टी के पास कार्रवाई न करने की वजह भी तैयार है  'उनकी पत्नी जिला पंचायत सदस्य है, बहुमत खिसक गया तो कुर्सी चली जाएगी।' तो अब शर्म नहीं, कुर्सी बचाना राष्ट्रीय कर्तव्य हो गया है। और जनता? वह सिर्फ स्क्रीन पर क्लिप देखती है और अगला वीडियो आने तक भूल जाती है।


जब शर्म जिंदा थी...

वर्तमान हालात में यह सब पढ़ते हुए अगर आपको झटका लगा हो, तो जान लीजिए ऐसा हमेशा नहीं था।  लाल बहादुर शास्त्री ने रेल दुर्घटना के बाद, भले उसमें उनका दोष न हो, इस्तीफा दे दिया था। भाजपा के पूर्व विदेश मंत्री जसवंत सिंह, जिन्ना पर किताब लिखने के बाद पार्टी लाइन से टकराए तो पार्टी से बाहर कर दिए गए। घनश्याम ओझा, मुख्यमंत्री रहते हुए इंदिरा गांधी पर बयान देने के चलते मुख्यमंत्री पद छोड़ने को मजबूर हो गए। अरेलु रामास्वामी, मंत्री थे, बयान विवादित हुआ और उन्होंने खुद इस्तीफा देकर सार्वजनिक जीवन का सम्मान बचाया।

लेकिन अब क्या?

अब तो सुप्रीम कोर्ट भी डांटे, तब भी मंत्री बने रहते हैं। क्योंकि राजनीति अब जनसेवा नहीं, वोट प्रबंधन है। और आत्मसम्मान? वह तो फेसबुक स्टेटस में होता है, संसद या मंच पर नहीं। जिस दोहे को कभी नैतिकता का शिखर माना जाता था, अब वह सत्ता के गलियारों में 'मेमोरी लॉस' का शिकार है। अब इज्जत नहीं, इलेक्शन देखा जाता है। अब नेता का चरित्र नहीं, कास्ट कैलकुलेशन देखा जाता है। और यही है प्रदेश की राजनीति का न्यू नार्मल, जहां जनता की नहीं, जुगाड़ की जय जयकार होती है। हालांकि यह लेख लिखते वक्त मोबाइल पर न्यूज फ्लेश आया है कि धाकड़ को गिरफ्तार कर लिया गया है लेकिन मंत्री शाह पर कब कार्रवाई होगी इसके हो सकता है तब तक इंतजार करना पड़े जब तक पार्टी को कोई उनकी टक्कर का आदिवासी नेता नहीं मिला जाता आखिरकार सरकार वोट से बनती है आपकी भावनाओं से नहीं।

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