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राम की नगरी के नाम से जाना जाता है रामपायली

बालाघाट मप्र /नमित शुक्ला की स्पेशल रिपोर्ट राम की नगरी के नाम से जाना जाता है रामपायली..रामपायली में भगवान राम को काले बालाजी के नाम से भी ...


बालाघाट मप्र /नमित शुक्ला की स्पेशल रिपोर्ट


राम की नगरी के नाम से जाना जाता है रामपायली..रामपायली में भगवान राम को काले बालाजी के नाम से भी जाना जाता है..


वनवास के समय रामपायली से गुजरे थे भगवान श्री रामजी के साथ हनुमान जी है । जिनका एक पांव घरती में तो दूसरा पांव पाताल लोक मै है । तो वही प्राकृतिक रूप से रेत से बने शिव लिंग है जिसका का एक छोर ऊपर तो दूसरे छोर का अंत नही

रामपायली का पुराना नाम रामपदावली है...यहां मुस्लिम टेलर सिलता है भगवान के कपड़े

एंकर - बालाघाट जिले की रामपायली को भगवान श्रीराम की नगरी के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि भगवान श्रीराम 14 वर्षो के वनवास के समय इसी नगरी से होते हुये रामटेके गये थे । चंदन नदी किनारे यह मंदिर श्रीराम बालाजी मंदिर के नाम से विख्यात है..


वॉइसवोवर - बालाघाट मुख्यालय से 30 किमी दूर स्थित रामपायली में भगवान राम का 1625 ईसवी में बना प्रसिद्ध मंदिर है..मंदिर में साल भर मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ व महाराष्ट्र के भक्तगण भगवान के दर्शन करने पहुंचते है यहां पर चंदन नदी के तट पर किलेनुमा मंदिर मौजूद है जिसमें भगवान श्रीराम और सीता की कालेपत्थर की क्रोधित रुप की वनवासी रुपी प्रतिमा


विराजमान है, जो भगवान के वनवास के दिनों में भ्रमण को दर्शाती है । इतना ही नही इस मंदिर में रेत के शिवलिंग और हनुमान जी का मंदिर है जो लंगड़े हनुमान जी के नाम से प्रसिद्ध है हनुमान जन्मोत्सव व कार्तिक पूर्णिमा में विशाल भीड़ लगी रहती है..  यहां का प्रसिद्ध श्रीराम बालाजी मंदिर भगवान श्रीराम के वनगमन की कई ऐतिहासिक धरोहरों और मान्यतों को समेटे हुए हैं इतिहासकारों की माने तो रामपायली में ऋषि शरभंग का आश्रम था । वनवास के दौरान प्रभु श्रीराम सीता माता के साथ उनके दर्शन करने पहुंचे थे ।

लेकिन दर्शन करने के पहले ही रामपायली से कुछ दूर स्थित गांव देवगांव में विराध नामक राक्षस सामने आ गया था । जिसका वध कर उन्होंने ऋषि के दर्शन प्राप्त किए थे । हालांकि इस दौरान सीता माता राक्षस के सामने आने से भयभीत हो गई थी जिसके चलते भगवान ने विकराल रुप धारण कर सीताजी के सिर पर हाथ रख अभयदान दिया था । इसी रुप में रामपायली मंदिर में बालाजी व माता सीता की वनवासी प्रतिमा विराजमान हैं... राममंदिर के पुजारी गौरीशंकर दास वैष्णव ने जानकारी देते हुये बताया कि भगवान श्रीराम सीता के भ्रमण के साथ ही रामपायली मंदिर में वनवासी रुप की मूर्ति स्थापना की अलग गाथा है.यहां सैकड़ो साल पहले एक व्यक्ति को स्वप्न दिखाई दिया था ।जिसमें नदी के अंदर हजारों वर्ष पुरानी उक्त प्राचीन मूर्ति के होने को बताया था । जिसके बाद उक्त स्थान से मर्ति को चंदन नदी से निकालकर एक पेड़ के नीचे स्थापित किया गया था । इस स्थान को राम डोह के नाम से भी जाना जाता है । इसके बाद नागपुर के राजा भोसले ने सन 1665 में मंदिर का जीर्णोंद्धार कर मूर्ति की स्थापना की थी और 18 वीं शताब्दी में मंदिर का नव निर्माण कर इसे आधुनिक रुप दिया था..मंदिर में स्वयं प्रकट श्रीराम भक्त हनुमान जी की प्रतिमा है जो लंगड़े हनुमान जी के नाम से प्रख्यात है । पौराणिक मान्यता के अनुसार श्रीराम भक्त पूर्व मुखी हनुमान जी की मूर्ति का एक पैर जमीन पर और दूसरा पैर यानि बायां पैर जमीन के अंदर होने से स्पष्ट दिखाई नहीं देता है वर्षों पूर्व एक समिति ने हनुमानजी की मूर्ति हटाकर मंदिर में स्थापित करने की कोशिश की थी तब पचास फीट से अधिक गड्ढा खोदा गया था, लेकिन पैर का दूसरा छोर नहीं मिल पाया. मान्यता है कि भगवान हनुमान जी का पैर पाताल लोक तक गया है, यहां हनुमान जन्मोत्सव व कार्तिक पूर्णिमा के अलावा साल भर श्रृद्धालूओं का तांता लगा रहता है मंदिर पहुंचने वाले भक्तगण इन मूर्तियों की कहानियां बड़े उत्साह से सुनते हैं... शिवलिंग के दर्शन करने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालू पहुंचते हैं धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यहां पर रेत की षिवलिंग स्वंयभू है जो सभी की मनोकामनाएं पुर्ण करते है. चंदन नदी किनारे मंदिर होने से रोजाना सूरज की पहली किरण रेत के शिवलिंग को स्पर्श करते हुये भगवान राम जिन्हें काले बालाजी के नाम से भक्तगण पुकारते है. उनके चरणों में पढ़ती हैं यह दृश्य प्रातः सुबह देखा जा सकता है..

तो वही मंदिर के नीचे आसिफ अली जो टेलरिंग का काम करते है आसिफ अली का परिवार पिछली तीन पीढ़ियों से बिना पैसे और निःस्वार्थ भाव से प्रभू श्री रामचंद्र जी के वस्त्र सिलते आ रहे है । ऐसा करने से उन्हें संतुष्ट मिलती है ।

बाइट – गौरीशंकर दास वैष्णव (पुजारी)

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