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सिंधिया का सरलता संग स्वाभिमान वाला शिवपुरी दौरा – बछड़े को गोद में दुलारा, खटिया पर बैठ आदिवासी बहनों संग खाया दाल-पान्या

  सिंधिया का सरलता संग स्वाभिमान वाला शिवपुरी दौरा – बछड़े को गोद में दुलारा, खटिया पर बैठ आदिवासी बहनों संग खाया दाल-पान्या शिवपुरी। राजनीत...

 सिंधिया का सरलता संग स्वाभिमान वाला शिवपुरी दौरा – बछड़े को गोद में दुलारा, खटिया पर बैठ आदिवासी बहनों संग खाया दाल-पान्या


शिवपुरी। राजनीति के मंच पर जहां अक्सर दिखावा और तामझाम का बोलबाला रहता है, वहीं केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने इस बार शिवपुरी के अपने दौरे को एक भावनात्मक और जनसामान्य से जुड़ा अनूठा आयाम दे दिया। दो दिनों के इस प्रवास में सिंधिया ने न केवल सादगी का परिचय दिया, बल्कि दिलों को भी छू लिया।

कल की बात करें तो कोलारस में एक कार्यक्रम के दौरान सिंधिया ने गाय के बछड़े को गोद में उठाकर स्नेह से सहलाया, मानो कोई मां अपने शिशु को दुलारा कर रही हो। यह दृश्य देखकर लोगों की आंखें चमक  आईं और कैमरे के फ्लैश झिलमिलाने लगे। सिंधिया का यह मानवीय और करुणामयी रूप अब सोशल मीडिया पर तेज़ी से वायरल हो रहा है, जहां लोग उन्हें "नेता नहीं, जन-नायक" कहकर संबोधित कर रहे हैं।

आज, यानी दौरे के दूसरे दिन, सिंधिया पहुंचे नैनगिर गांव की चौपाल में, जहां उन्होंने सहरिया आदिवासी दीदियों के साथ एक खटिया पर बैठकर उनके हाथों से बनी दाल और पान्या खाया। न कोई विशेष व्यंजन, न कोई झूठा दिखावा—बस एक खटिया, कुछ पत्तलें और सादगी भरा स्वाद। सिंधिया ने जिस अपनत्व के साथ गांव की बहनों के बीच समय बिताया, उससे वहां मौजूद हर ग्रामीण का चेहरा खिल उठा।एक बुजुर्ग महिला रत्ना बाई की आंखें नम थीं, उन्होंने कहा—“हमने तो आज राजा को अपने घर में बैठते देखा, अब क्या देखना बाकी है।”

कार्यक्रम में शामिल सहरिया क्रांति सदस्य अजय आदिवासी  ने कहा—“सिंधिया जी का यह रूप हमें अहसास कराता है कि बड़े पदों पर बैठे लोग भी अगर चाहें तो ज़मीन से जुड़े रह सकते हैं।”

इस दौरे ने न केवल प्रशासनिक बैठकों से परे जनसंपर्क की नई मिसाल पेश की, बल्कि शिवपुरी की मिट्टी में सिंधिया का एक भावनात्मक रिश्ता और गहरा कर दिया है।अब यह दृश्य, यह आत्मीयता और यह सादगी शिवपुरी के दिलों में लंबे समय तक बसी रहने वाली है। सोशल मीडिया हो या जनमानस—हर कोई यही कह रहा है:

“नेता तो बहुत देखे, पर ऐसा दिल जीतने वाला अंदाज़ बहुत कम देखने को मिलता है।”

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