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गीता का गुप्त ज्ञान क्या है...?

  गीता का गुप्त ज्ञान क्या है?आज का प्रभू संकीर्तन।।कृष्ण कहते हैं कि अर्जुन से प्रिय मेरा सखा कोई नही। मित्रो ये अत्यंत दुर्लभ कथा हैं जरूर...

 गीता का गुप्त ज्ञान क्या है?आज का प्रभू संकीर्तन।।कृष्ण कहते हैं कि अर्जुन से प्रिय मेरा सखा कोई नही। मित्रो ये अत्यंत दुर्लभ कथा हैं जरूर पढ़ें ।एक  दिन कान्हा जी की मुस्कान रोके नहीं रुक रही  थी अकेले ही महल की छत पर बैठे हुए श्री कृष्ण दूर आकाश में चाँद को निहारते जा रहे थे  और मंद मंद मुस्कुराते जा रहे थे  !  


        वह बार बार पीछे मुड़ के देख भी लेते थे  कि कहीं कोई उन्हें देख तो नहीं रहा, और फिर  अपने स्वप्नों की दुनिया एवं  मधुर  विचारों में  खोकर मुस्कुराने लगते थे  !

      अचानक  उसी समय अर्जुन वहां पर आ गये ।अपने सखा श्री कृष्ण को अकेले में मुस्कुराता देखकर,अर्जुन ने उनके आनंद में विघ्न डालना उचित ना समझा और चुपचाप एकांत में खड़े होकर प्रभु लीला  के दर्शन करने लगे !

अर्जुन सोचने लगे आखिर कान्हा  को इस चाँद में ऐसा क्या नज़र आ रहा है....?  जो ये इतना मुस्कुरा रहे हैं और फिर अर्जुन ने नजरे  उठाकर चन्द्रमा की ओर  देखा  जो  पूर्ण  प्रकाशमय होकर  अपनी मनमोहक किरणे फैला रहा  था एवं वातावरण को मन  को प्रसन्न करने वाला बना रहा था ! 

       जब और  गौर से देखा  तो आश्चर्यचकित रह गए ! चाँद में अर्जुन को साक्षात  "श्री राधारानी " के दर्शन होने लगे श्री राधे  भी यमुनाजी के किनारे बैठी यमुनाजी की श्याम   वर्ण लहरों में अपने  सांवरे के दर्शन कर रही थी  और मुस्कुराती भी जाती थीं और कान्हा जी से बातें भी करती जाती थी ! 

     राधे रानी बोली  “देख रहे हो कान्हा जी  आपके सखा अर्जुन चुप चाप हमारी बातें सुन रहे हैं ”  !  श्री राधे यमुनाजी की लहरों में अपना हाथ लहराते हुई बोली !

      कान्हा जी बोले “अर्जुन से तो कुछ छुपा नहीं है राधे ! वो तो बस मेरे आनंद में विघ्न उत्पन्न करना नहीं चाहता  है !  ” कान्हा जी  ये बात  गोरे चाँद की तरफ निहारते हुए बोले !  

    राधा रानी मुस्करा कर इठलाती हुए  जिज्ञासा के भाव से  बोली  “अगर ऐसा है, आपको अर्जुन इतने ही प्रिय हैं तो आपने गीता का ज्ञान देते समय अर्जुन से एक बात छुपा के क्यूँ रक्खी ?” 

       कान्हा जी बोले  “वो इसलिए राधे की उस बात को सुनने के बाद अर्जुन की वहीँ समाधि लग जाती और वो युद्ध आदि कुछ भी नहीं कर पाता !” श्री कृष्ण महल की छत के एक किनारे से दूसरे किनारे को जाते हुए बोले ! 

     राधे जी बोली  “ठीक है कान्हा जी अब हम कल बात करेंगे। अर्जुन आपके निकट आ रहे हैं ! ” श्री राधा ने ऐसा कहते हुए अपना आँचल यमुना के शांत जल में लहराया जिस से जल में विक्षोभ उत्पन्न हुआ और वहां से कान्हा जी की छवि अदृश्य हो गयी !

      उधर कान्हा जी  ने चाँद के सामने हाथ फेरकर उसे बादलों से ढँक दिया जिससे   राधे  की छवि वहां से अदृश्य हो गयी !

अर्जुन हिम्मत करके श्री कृष्ण के सम्मुख आये और हाथ जोड़कर बोले - “क्षमा करें प्रभु ! लेकिन ऐसी कौन सी बात है जो आपने गीता के ज्ञान में से मुझे नहीं बताई ?”

      श्री कृष्ण मुस्कुराते हुए बोले - “  क्या याद है अर्जुन कि एक बार  मैंने तुमसे कहा था की मै फिर तुमसे उस ज्ञान को कहूँगा जिसको जान लेने के बाद और कुछ जानना शेष नहीं रह जाता और जिसे जान लेने के बाद मानव का वेदों से उतना ही प्रयोजन रह जाता है जितना सागर मिलने के बाद छोटे तालाब से और इतना कहकर मै चुप रह गया था ?

     “हाँ प्रभु !!  मुझे याद है आप वेदों का सार बताते बताते चुप रह गए थे ! ” अर्जुन ने विस्मित होकर कहा !

      श्री कृष्ण ने आकाश की ओर देखा चाँद पूरी तरह छिप चुका था और फिर अर्जुन के कंधे पर हाथ रखकर बोले - “राधानाम !!  ही सब वेदों का सार है अर्जुन ! 

     श्री राधे की कृपा से ये जान लेने के बाद और कुछ जानना शेष नहीं रह जाता बस राधे ही एक मात्र जानने योग्य हैं ! श्री राधा नाम जपने मात्र से ही मनुष्य सब वेदों का पार पा लेता है !” और इस प्रकार गीता के पूर्ण ज्ञान को पाकर अर्जुन  " समाधि  अवस्था  के योग्य  " हुए !!जय जय श्री राधेकृषणा जी।

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